हर ग़म को अपने गले लगाना कोई ज़रूरी तो नही,
आँखों से आंसू पल पल गिराना कोई ज़रूरी तो नही,
दर्द हजारों रह सकते हैं इस दिल की आहों मे छुप कर,
चेहरे पे उनकी नुमाइश लगाना कोई ज़रूरी तो नही,
अपनी इबादतों पे यकीं करता हूँ मैं बस इतनी ख़बर है,
खुदा का मुझ पर मेहर लुटाना कोई ज़रूरी तो नही,
अपनी मंजिल का तो पता पूछ ही लूँगा अंधियारे से,
धुप का मेरी राह चमकाना कोई ज़रूरी तो नही,
वक़्त सहला के कर देता है सारे ज़ख्मों का इलाज,
बातों का उनपे मरहम लगाना कोई ज़रूरी तो नही,
हकीकतों की ज़मीं पे गहरी नींद सो लेता हूँ मैं ,
ख्वाबों की इसपे चादर बिछाना कोई ज़रूरी तो नही,
उम्र के इस मुकाम पे जो खुदगर्ज़ हो चले हैं,
उन रिश्तों का बोझ उठाना कोई ज़रूरी तो नही,