Sunday, May 6, 2012

शहंशाह बन गए...

कभी तेरी  हंसी ...तो  कभी आह बन गए,
नफरत तेरी .....कभी तेरी  चाह बन गए, 

कभी तेरी  राहों  की .....मंजिल हम बने,
कभी तेरी  मंजिल की हम राह बन गए, 

आंचल में तेरे कभी अपने ग़म को छुपाया,
और कभी तेरे दर्द की,  हम पनाह बन गए, 

तेरी नज़र गिरा न दे ,हम तो इस डर से,
अपनी ही निगाहों में इक  गुनाह बन गए, 

तू ने जो चाहा दिन जो उजाले दिये बिखेर , 
मांगी जो रात तो रंग हम सियाह बन गए, 

ये दिल मेरा गुलामी तेरी करने जब लगा, 
तेरे दिल के  तब से हम  शहंशाह बन गए ...