Tuesday, March 25, 2008

चंद शेर

१। कब तक यूं ही तन्हा तनहा ख्वाबों मे सैर होगी,

बड़ी दुशवार अब नींद भी तेरे बगैर होगी,

तुम अपने लम्हों को ज़रा मेरे वक्त से आकर जोडो,

तुम साथ होगी तब ही तो इस शब की खैर होगी

२। बड़ी रफ़्तार से वक्त और हालात बदलते हैं,

पल भर में ही लोगो के जज्बात बदलते हैं,

जिन लबों पे नाम मेरा रहता था मुस्तकिल,

मेरा ज़िक्र आते ही अब वह बात बदलते हैं

३। क्यों बेवफाई का सबक मुझको सिखा दिया,

बागियों की फेरहिस्त में मेरा नाम लिखा दिया,

खुश्फहमियों के सराब में जी रहा था में,

क्यों हकीकत का आइना मुझको दिखा दिया

Monday, March 17, 2008

तेरी ऑंखें जादू करती हैं

तेरी ऑंखें जादू करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं


कुछ मुस्काती ,कुछ रोई सी,

कुछ अलसाती कुछ सोई सी,

कुछ यादों में हैं उलझी सी,

कुछ सपनो मे हैं खोई सी



इनके आगे ही झुक झुक कर ,

तेरी पलकें सजदा करती हैं,



तेरी ऑंखें जादू करती हैं,

तेरी ऑंखें जादू करती हैं



इनमे दिन हैं और रातें हैं,

खामोशी है और बातें हैं,

इनमे हैं जुदाई के लम्हे,

और इनमे ही मुलाकातें हैं,


वक्त भी रुक सा जाता है ,

इक पल ये जहाँ ठहरती हैं,



तेरी ऑंखें जादू करती हैं,

तेरी ऑंखें जादू करती हैं



ये खुशबु को महकाती हैं,

और खुशियों को चहकाती हैं,

हर रात नशीली कर के ये

ख्वाबों को बहकाती हैं,


पलकों के पीछे चुप करके ,

मासूम खताएं करती हैं,


तेरी ऑंखें जादू करती हैं,

तेरी ऑंखें जादू करती हैं















Saturday, March 15, 2008

मर्ज़-ऐ-खुदगर्जी

किस बात का है हम को मलाल पूछते हैं
ज़ख्मों से दर्द की मिसाल पूछते हैं,

हर सितम पे बनती है जिनकी जावाबदेही,
मासूमियत भरे वो सवाल पूछते हैं

राहों को पत्थरों से दुशवार बना के ,
लडखडाती क्यों है वो चाल पूछते हैं

ख़ुद अपनी गवाही पे ले कर के फैसले,
क्या है आवाम का ख्याल पूछते हैं

खुदगर्जी के मर्ज़ से बीमार हो चले हैं,
और लोगों की तबियत का हाल पूछते हैं



Friday, March 14, 2008

एक दूसरा जहाँ ...

मोहब्बत की दुनिया के आगे इक और जहाँ हो सकता है,
कुछ और ही कह के पुकारो इसे यह प्यार कहाँ हो सकता है

जाने क्यों हम इन नग्मों को होठों पे सजा के फिरते हैं,
वैसे तो यह पूरा अफसाना आँखों से बयां हो सकता है

आसां तो नहीं है इतना भी यादों की किताबें पढ़ लेना,
किसी भी पन्ने पर हिसाब ज़ख्मों का निहां हो सकता है

ज़रूरी नहीं की इस दिल मे हसरत के शोले दहकते हों,
जो दिखता है वो बुझती हुई ख्वाइश का धुआं हो सकता है,

लोग मेरी इन आँखों मे क्यों तुमको ढूँढा करते हैं,
पलकों पर बाकी अब तक तेरे ख्वाबों का निशान हो सकता है,

तुम अपनी बेवफाई पे अब मुझको यकीन आ जाने दो,
वरना फ़िर तेरी मोहब्बत का मुझको भी गुमान हो सकता है