हर रोज़ मैं अपनी यादों से तेरे दिल पे लकीरें खींचूंगा,
हर रात मैं अपने सपनो से तेरी नींदों को सीचूंगा,
ये डोर है कच्चे धागों की,ये बिन जोड़े जुड़ जाएगी,
तुम बात कोई भी छेडोगी,वो मेरी तरफ मुड जायेगी...
फिर लौट के तू आ जाएगी...
जब बारिश की गुमसुम बूंदे इक सूनापन बरसाएंगी,
जब सावन की वो ख़ामोशी तेरे लफ़्ज़ों को तरसायेंगी,
तब धूप मेरी आवाजों की तेरे मन पे कुछ लिख जाएगी,
और मौसम की बदली रंगत तेरी सूरत पे दिख जाएगी...
फिर लौट के तू आ जाएगी...
बीते लम्हों की महफ़िल में तुम जाकर मुझको ढूँढोगी
मुझको आंखों में छुपा लोगी और पलकें अपनी मून्दोगी,
जब मेरे ख्यालों की ख्श्बू तेरी साँसों को महकाएगी,
तब मेरे गीतों की सरगम तेरे होठों पे सज जायेगी......
फिर लौट के तू आ जाएगी...
Tuesday, August 17, 2010
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