Wednesday, May 14, 2008

तुम बिन

तुम बिन मेरा जीवन कुछ ऐसा हो जाए,

हाथ से उसकी रेखाएं जैसे खो जाएं

जैसे गीत को उसकी सरगम ना मिल पाये,

जैसे सुबह बिना सबा के ही खिल जाए

जैसे कोई चांदनी बिन रात के हो,

जैसे सूनी जुबान बिन बात के हो

जैसे मिलकर बिछुड़े मन के अपने हो,

जैसे आंख से रूठे उसके सपने हों

जैसे बारिश से हो उसकी बूंदे जुदा,

जैसे बिना इबादत के हो कोई खुदा

जैसे तारों से खफा जगमग हो जाए,

और ज़ख्म से दर्द कभी अलग हो जाए

जैसे नशे से छीन ले कोई उसका सुरूर,

कोई कैसे रह सकता है ख़ुद से दूर




Sunday, May 4, 2008

बहुत साल पहले

ना स्वर की आई थी समझ और न शब्दों का ज्ञान था,
फ़िर भी माँ कह पाना तुझको माँ कितना आसान था,

मिश्री में घुली लोरी सुन जब नींद मुझे आ जाती थी,
सुंदर से सपने तुम मेरे तकिये पे रख जाती थी,

मेरी ऑंखें देख के मन की बातें तुम बुन लेती थी ,
मेरी खामोशी को जाने तुम कैसे सुन लेती थी,

मेरी नन्ही उंगली तेरी मुट्ठी मे छिप जाती थी,
कितनी हिम्मत तब मेरे इन क़दमों को मिल जाती थी,

चोट मुझे लगती थी लेकिन दर्द तो तुम ही सहती थी,
मेरी आँखों की पीड़ा तेरी आँखों से बहती थी,

तेरे आँचल मे छुपने को मन सौ बार मचलता है,
माँ तेरी गोदी में अब भी मेरा बचपन पलता है