Wednesday, May 14, 2008

तुम बिन

तुम बिन मेरा जीवन कुछ ऐसा हो जाए,

हाथ से उसकी रेखाएं जैसे खो जाएं

जैसे गीत को उसकी सरगम ना मिल पाये,

जैसे सुबह बिना सबा के ही खिल जाए

जैसे कोई चांदनी बिन रात के हो,

जैसे सूनी जुबान बिन बात के हो

जैसे मिलकर बिछुड़े मन के अपने हो,

जैसे आंख से रूठे उसके सपने हों

जैसे बारिश से हो उसकी बूंदे जुदा,

जैसे बिना इबादत के हो कोई खुदा

जैसे तारों से खफा जगमग हो जाए,

और ज़ख्म से दर्द कभी अलग हो जाए

जैसे नशे से छीन ले कोई उसका सुरूर,

कोई कैसे रह सकता है ख़ुद से दूर




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