बगैर मन्नतों की इबादत की कद्र कीजिये,
बेवजह याद करने की आदत की कद्र कीजिये,
बेखौफ चले आते हैं ये दिल से निकल कर,
थोड़ा तो इन लफ्जों की हिमाकत की कद्र कीजिये,
बरसों पुरानी होके भी ये महक रही हैं,
यादों की ताजगी की हिफाज़त की कद्र कीजिए,
ख्वाइश मुक्कमल हो जाए इतनी सी है ख्वाइश,
रवाएतो से इनकी बगावत की कद्र कीजिये,
दर्द मेरे सभी हैं अब आपके सुपुर्द,
ख़ुद ही आप अपनी अमानत की कद्र कीजिये,
जुदाई में ही मुमकिन था इस रिश्ते का वजूद,
कुछ तो इस रिश्ते की नजाकत की कद्र कीजिये,
1 comment:
बहुत बढिया लिखा है।बधाई स्वीकारें।
आप सभी को गाँधी जी शास्त्री जी व ईद की बहुत बहुत बधाई।
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