मोहब्बत की दुनिया के आगे इक और जहाँ हो सकता है,
कुछ और ही कह के पुकारो इसे यह प्यार कहाँ हो सकता है
जाने क्यों हम इन नग्मों को होठों पे सजा के फिरते हैं,
वैसे तो यह पूरा अफसाना आँखों से बयां हो सकता है
आसां तो नहीं है इतना भी यादों की किताबें पढ़ लेना,
किसी भी पन्ने पर हिसाब ज़ख्मों का निहां हो सकता है
ज़रूरी नहीं की इस दिल मे हसरत के शोले दहकते हों,
जो दिखता है वो बुझती हुई ख्वाइश का धुआं हो सकता है,
लोग मेरी इन आँखों मे क्यों तुमको ढूँढा करते हैं,
पलकों पर बाकी अब तक तेरे ख्वाबों का निशान हो सकता है,
तुम अपनी बेवफाई पे अब मुझको यकीन आ जाने दो,
वरना फ़िर तेरी मोहब्बत का मुझको भी गुमान हो सकता है
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1 comment:
जाने क्यों हम इन नग्मों को होठों पे सजा के फिरते हैं,
वैसे तो यह पूरा अफसाना आँखों से बयां हो सकता है
bilkul sachhi baat hai..
shukriya
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