Saturday, March 15, 2008

मर्ज़-ऐ-खुदगर्जी

किस बात का है हम को मलाल पूछते हैं
ज़ख्मों से दर्द की मिसाल पूछते हैं,

हर सितम पे बनती है जिनकी जावाबदेही,
मासूमियत भरे वो सवाल पूछते हैं

राहों को पत्थरों से दुशवार बना के ,
लडखडाती क्यों है वो चाल पूछते हैं

ख़ुद अपनी गवाही पे ले कर के फैसले,
क्या है आवाम का ख्याल पूछते हैं

खुदगर्जी के मर्ज़ से बीमार हो चले हैं,
और लोगों की तबियत का हाल पूछते हैं



2 comments:

अमिताभ मीत said...

खुदगर्जी के मर्ज़ से बीमार हो चले हैं,
और लोगों की तबियत का हाल पूछते हैं
अच्छा है भाई.

Unknown said...

राहों को पत्थरों से दुशवार बना के ,
लडखडाती क्यों है वो चाल पूछते हैं
kya baat kahi hai..
its too gud....

shukriya