क्यूँ नही चेहरे पे मेरे ग़म नज़र आता है,
क्या करें लोगों को थोड़ा कम नज़र आता है,
निगाहें बयां कर देती हैं इंसान की फितरत,
शकल से तो हर शख्स हमदम नज़र आता है,
मायूसियों की धुप है, उदासियों की बारिश,
ये तो कोई नया ही मौसम नज़र आता है,
शायद सारी रात रोये हैं ये सपने जाग के,
आँखों का बिछौना कुछ नम नज़र आता है,
ये ज़ख्म तुम्हारी ओर बड़ी उम्मीद से देखते हैं,
बातों में तुम्हारी इन्हें मरहम नज़र आता है,
अपनी इबादतों पे फ़िर से यकीन कर के देखें,
इनके हौसले में अब भी दम नज़र आता है,
Sunday, August 31, 2008
Tuesday, August 26, 2008
ज़रा सी ज़हमत और सही...
जुबान पे ला के रिश्ते को रुसवा नही करना ,
जहाँ से नज़रें चुरा के निगाहों से उतरना,
थक के मेरे सीने में जा सो गया है वो,
उस दर्द पे पाँव रख के तुम अब न गुज़रना,
ऑंखें न बन सकेंगी अब उनकी मेज़बान,
कह दो अपने ख्वाब से वो आए इधर न,
बरसों से दिल में फक्र से रहते थे जो लम्हे, ,
अब ख़ुद ही चाहते है वो खुल के बिखरना,
अब वहां पे कोई मेरा आशियाँ नही,
यादों के शहर जाके कहीं और ठहरना
जहाँ से नज़रें चुरा के निगाहों से उतरना,
थक के मेरे सीने में जा सो गया है वो,
उस दर्द पे पाँव रख के तुम अब न गुज़रना,
ऑंखें न बन सकेंगी अब उनकी मेज़बान,
कह दो अपने ख्वाब से वो आए इधर न,
बरसों से दिल में फक्र से रहते थे जो लम्हे, ,
अब ख़ुद ही चाहते है वो खुल के बिखरना,
अब वहां पे कोई मेरा आशियाँ नही,
यादों के शहर जाके कहीं और ठहरना
Monday, August 18, 2008
नई सुबह
आज सुबह से पुछा मैंने इतना क्यूँ मुस्काती हो,
रोज़ रोज़ इक नई ज़िन्दगी कहाँ से ले कर आती हो,
कभी तो लाये धुप सुनहरी कभी रुपहले बादल तू,
और कभी फ़िर ओढ़ के आए सतरंगी सा आंचल तू,
कभी हवा में छिपा के खुशबु फूलों तक ले जाती हो,
और रंग फूलों के चुरा के घर घर तुम पहुंचाती हो,
कभी चहकती नदी में बहती आशाओं की नाव बने,
कभी निराशाओ के पल में उम्मीदों की छाँव बने
कभी ओस की चादर बन तुम अंधियारे ढक लेती हो,
और रौशनी को उसकी आज़ादी का हक देती हों
इन आँखों से नींद उड़ा के सपने तुम भर देती हो,
उन सपनो को राह दिखा कर पल में सच कर देती हो
।
रोज़ रोज़ इक नई ज़िन्दगी कहाँ से ले कर आती हो,
कभी तो लाये धुप सुनहरी कभी रुपहले बादल तू,
और कभी फ़िर ओढ़ के आए सतरंगी सा आंचल तू,
कभी हवा में छिपा के खुशबु फूलों तक ले जाती हो,
और रंग फूलों के चुरा के घर घर तुम पहुंचाती हो,
कभी चहकती नदी में बहती आशाओं की नाव बने,
कभी निराशाओ के पल में उम्मीदों की छाँव बने
कभी ओस की चादर बन तुम अंधियारे ढक लेती हो,
और रौशनी को उसकी आज़ादी का हक देती हों
इन आँखों से नींद उड़ा के सपने तुम भर देती हो,
उन सपनो को राह दिखा कर पल में सच कर देती हो
।
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