क्यूँ नही चेहरे पे मेरे ग़म नज़र आता है,
क्या करें लोगों को थोड़ा कम नज़र आता है,
निगाहें बयां कर देती हैं इंसान की फितरत,
शकल से तो हर शख्स हमदम नज़र आता है,
मायूसियों की धुप है, उदासियों की बारिश,
ये तो कोई नया ही मौसम नज़र आता है,
शायद सारी रात रोये हैं ये सपने जाग के,
आँखों का बिछौना कुछ नम नज़र आता है,
ये ज़ख्म तुम्हारी ओर बड़ी उम्मीद से देखते हैं,
बातों में तुम्हारी इन्हें मरहम नज़र आता है,
अपनी इबादतों पे फ़िर से यकीन कर के देखें,
इनके हौसले में अब भी दम नज़र आता है,
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