Monday, August 18, 2008

नई सुबह

आज सुबह से पुछा मैंने इतना क्यूँ मुस्काती हो,
रोज़ रोज़ इक नई ज़िन्दगी कहाँ से ले कर आती हो,

कभी तो लाये धुप सुनहरी कभी रुपहले बादल तू,
और कभी फ़िर ओढ़ के आए सतरंगी सा आंचल तू,

कभी हवा में छिपा के खुशबु फूलों तक ले जाती हो,
और रंग फूलों के चुरा के घर घर तुम पहुंचाती हो,

कभी चहकती नदी में बहती आशाओं की नाव बने,
कभी निराशाओ के पल में उम्मीदों की छाँव बने

कभी ओस की चादर बन तुम अंधियारे ढक लेती हो,
और रौशनी को उसकी आज़ादी का हक देती हों

इन आँखों से नींद उड़ा के सपने तुम भर देती हो,
उन सपनो को राह दिखा कर पल में सच कर देती हो

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