जुबान पे ला के रिश्ते को रुसवा नही करना ,
जहाँ से नज़रें चुरा के निगाहों से उतरना,
थक के मेरे सीने में जा सो गया है वो,
उस दर्द पे पाँव रख के तुम अब न गुज़रना,
ऑंखें न बन सकेंगी अब उनकी मेज़बान,
कह दो अपने ख्वाब से वो आए इधर न,
बरसों से दिल में फक्र से रहते थे जो लम्हे, ,
अब ख़ुद ही चाहते है वो खुल के बिखरना,
अब वहां पे कोई मेरा आशियाँ नही,
यादों के शहर जाके कहीं और ठहरना
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