Friday, January 9, 2009

तुम.....

नींद भी तुम और रात भी तुम,

खामोशी और बात भी तुम,

सुबह की धुप और शाम का रूप,

तुम चारों पहर का करार हो,

तुम ही तो मेरा प्यार हो,

चैन भी तुम आराम भी तुम,

फुर्सत तुम और काम भी तुम,

मज़हब तुम और मकसद तुम,

दीवानगी हो जूनून हो,

तुम ही तो मेरा सुकून हो,

राह भी तुम और चाह भी तुम,

दर्द भी तुम और आह भी तुम,

मन्नत और मंसूबों में ,

तुम मुद्दत से शामिल हो,

तुम ही तो मेरी मंजिल हो,

मर्ज भी तुम और दवा भी तुम,

तुम खुशबू और सबा भी तुम,

तुम माहौल तुम मिजाज़,

तुम मुस्कुराते मौसम हो,

तुम ही मेरे हमदम हो,

तुम ही मन तुम ही तन,

तुम धड़कन और जीवन,

तुम रवायत, तुम चाहत,

तुम ही मेरी इबादत हो,

तुम ही मेरी आदत हो,

2 comments:

Chavi said...

दीवानगी हो जूनून हो,
तुम ही तो मेरा सुकून हो..........!!!
its a great poem... but stil i found something is missing in this...i dont know much about poetry but when i read this creation what striked in my mind is that this poem is not complete... something is missing in it... kuch he jise apne shabd nahi diye... i felt so it kn be wrong.. but still try to change d end of this poem.it should be something which kn really express ur actual feelings for 'TUM'
And d 2 lines which i have written above i like most in this poem.. really.. jiske liye dil me diwangi or junoon ho... usi junoon se sukoon mil raha he... its great.. otherwise junoon to wo hota he jo neende ura deta he.. bechain kar deta he.. but ye junoon kitna pyara hoga jo is dil ko sukoon de raha he....!!!

Anonymous said...

behad khubsurat nazm badhai