Thursday, April 1, 2010

यूँ ही...

यूँ तो मुझे तुमसे कोई नाराज़गी नहीं,
पर अब इन वफाओं में वो ताजगी नहीं,

तन्हाई के इस शहर में आ के अच्छा -खासा बस गया हूँ
फितरत दीखते अब मेरी आवारगी नहीं,

इबादतों के तौर तरीके अब कुछ बदले से दिखते हैं,
अब उनमे सजदों की अदायगी नहीं

तुम को खोने की कसक भी अब थोड़ी सी कम हो गयी है,
रौनक है चेहरे पे बेचारगी नहीं,

ख्वाबों को अपने अब सुला दो और किसी की आँखों में तुम,
नींदों में अब मेरी वो दीवानगी नहीं,

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