Thursday, April 1, 2010

अब आ जाओ

हम को तो तेरे ख्वाबों से हो जाएगी तस्सली ,
इक रात तुम मुझको सुलाने के लिए आ जाओ,

सुनते हैं तेरी निग़ाह में है ठंडी सी एक तपिश,
इक बार मुझे उस आग में जलाने के लिए आ जाओ,

रूठी हो तुम सौ बार तो तुम्हे सौ बार मनाया ,
इक बार मुझे तुम भी मनाने के लिए आ जाओ ,

दिखते है निशां तेरे अब तक सागर के किनारे,
इक बार उन्हें बन के लहर मिटाने के लिए आ जाओ

4 comments:

डॉ 0 विभा नायक said...

shekhar ji, tareef karna to koi aapse seekhe, itna achchha kahaan likti hoon main, magar aap vakai kamaal ka likhte hain, sach batoon bura to nahi manenge??? mujhe rashq hota aapki likha padh ke, kya shayari hain jise padh ke muh se keval ek shabd nikalta hai, vah kya baat hai,,,,,,,,,,
shekhar ji, gustakhi maaf, magar jaanana chahti hoon ki vo kaun hai jise aap bula rahe hain, vo mahaan vibhuti hain kaun jinki kripa se hum itni khoobsurat rachnaayen padh rahe hain,,,,,,, dekhiye taliyga mt, batana to padega........

SHEKHAR said...

विभा...मैंने प्रशंसा इस लिए की क्यूंकि मुझे आपकी रचनाएं अच्छी लगी,जहाँ तक प्रश्न है की मैं किसको बुला रहा हूँ या किस से प्रेरित हो कर इन रचनाओं को लिखता हूँ...तो मेरे लिए ये बतलाना कठिन है...शायद इन पंक्तियों में आपको कोई सार मिल जाए...कुछ गुजिश्ता यादों की खुशबु,कुछ अनदेखे ख्वाबों का जादू,कुछ है अधूरी सी जुस्तजू,कुछ मुक्कम्मल सी आरज़ू, .....बस विभा जी इन्ही को जोड़ तोड़ कर कुछ बन पड़ता है तो आप सुधि जनों के समक्ष प्रस्तुत कर देता हूँ...एक गीत बनाने में क्या लगता है..मैंने इन पंक्तियों में समेटने का प्रयास किया है-
दर्द की स्याही को कागज़ पे बहाया जाये ,बिखरे लफ्जों से एक गीत बनाया जाये , उदासीओं के तर्रन्नुम से सजा कर के उसे ,जहाँ को हँसता हुआ वो नगमा सुनाया जाये

डॉ 0 विभा नायक said...

kavita likhna itna hi aasaan hota to har koi kavi bn jaata, ye uphaar to kisi kisi ko hi milta hai, khair, me aapki zyada taarif nahi karoongi, mujhe tareef karne ka shauk bhi nahi hai, magar kya karoon, kuchh rachnaayen vivash kar deti hain..........or kuchh naya taaza..........

SHEKHAR said...

चलिए आपकी तारीफ़ सर आँखों पर....तारीफ सुनना तो सभी को अच्छा लगता है,और जब तारीफ करने वाला इतनी साहित्यिक समझ बूझ का हो तो क्या कहना....कई दिनों से मन में एक रचना पक रही है..शायद एक दो दिनों में उसे बहार ला पाऊँ ..