लो बीती सुबह, गुजरी रात आज गया और कल गया,
मेरा हर ख्वाब रोज़मर्रा की कशमकश में ढल गया,
वो आग कभी गुरूर,कभी बदगुमानी ने लगा डाली,
मेरा मासूम चेहरा तड़प तड़प के उसमे जल गया,
बड़ा सुकून था किल्लत भरी उस ज़िन्दगी में भी ,
मयस्सर नियामतों का होना भी अब मुझको खल गया,
मेरे कुछ दोस्त थे,कुछ हमसफ़र और हमनवाज़ भी थे,
मेरा मसरूफ होना मेरे हर एक रिश्ते को छल गया,
मेरे हर माल की कीमत भी अब बढ़ चढ़ के लगती है,
ज़मीर बेचने का ये धन्धा भी अच्छा खासा चल गया
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