Friday, November 25, 2011
Saturday, November 12, 2011
, ख्वाब टूटने का डर....
कभी कभी कोई ख्वाब आँखों की दहलीज़ तक आ के ठिठक जाता है...
और सोचता है क्या लेटने के लिए गर्म बिछौना होगा अन्दर,
क्या उसकी उम्मीदें समेट सकेगी पलकों की नन्ही चादर,
आदत है इस ख्वाब को फैल कर के सोने की ,
कहीं ऐसा ना हो कि आंख की मुट्ठी खुल जाए,
और आंसू के पानी से रंग इसके धुल जाएँ,
वो ख्वाब रात भर ख़ामोशी से पकना चाहता है,
वो मुक्तसर से हर लम्हे को चखना चाहता है,
इल्म है धूप उसके जिस्म में ज़ख़्म कर देगी,
जागेगी जब सुबह तो इसे ख़तम कर देगी,
मुझे तुनक मिजाज़ नींद के रूठने का डर है
और सोचता है क्या लेटने के लिए गर्म बिछौना होगा अन्दर,
क्या उसकी उम्मीदें समेट सकेगी पलकों की नन्ही चादर,
आदत है इस ख्वाब को फैल कर के सोने की ,
खुल कर के हंसने की , खुल कर के रोने की,
कहीं ऐसा ना हो कि आंख की मुट्ठी खुल जाए,
और आंसू के पानी से रंग इसके धुल जाएँ,
वो ख्वाब रात भर ख़ामोशी से पकना चाहता है,
वो मुक्तसर से हर लम्हे को चखना चाहता है,
इल्म है धूप उसके जिस्म में ज़ख़्म कर देगी,
जागेगी जब सुबह तो इसे ख़तम कर देगी,
मुझे तुनक मिजाज़ नींद के रूठने का डर है
,
ख्वाब के बीतने का नहीं,इसके टूटने का डर है....
ख्वाब के बीतने का नहीं,इसके टूटने का डर है....
Monday, November 7, 2011
मेरा यार न मुझसे जुदा करे
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
ये सुना है मैंने खुदा है तू,
सब की तकदीरें लिखता है,
मेरा प्यार है अब तकदीर मेरी,
तू उसमे मुझ को दिखता है.....
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
मै सितम करूँ तू रहम करे,
मै आशिक हूँ तू आसिफ है.
मै तेरी रहमत जाने हूँ,
तू मेरी जिद से वाकिफ है....
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
है तेरी इबादत मजबूरी,
की मेरे लिए तू दुआ करे,
हाँ इश्क की ये खुदगर्जी है,
होती है खता तो हुआ करे,
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
गर तू हम सब का हाफ़िज़ है,
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
ये सुना है मैंने खुदा है तू,
सब की तकदीरें लिखता है,
मेरा प्यार है अब तकदीर मेरी,
तू उसमे मुझ को दिखता है.....
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
मै सितम करूँ तू रहम करे,
मै आशिक हूँ तू आसिफ है.
मै तेरी रहमत जाने हूँ,
तू मेरी जिद से वाकिफ है....
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
है तेरी इबादत मजबूरी,
की मेरे लिए तू दुआ करे,
हाँ इश्क की ये खुदगर्जी है,
होती है खता तो हुआ करे,
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
गर तू हम सब का हाफ़िज़ है,
इतनी तो इनायत अता करे,
तू छीन ले मुझ से मेरी खुदी,
मेरा यार ना मुझसे जुदा करे.........मेरा यार ना मुझसे जुदा करे....
मेरा यार ना मुझसे जुदा करे.........मेरा यार ना मुझसे जुदा करे....
या मौला मौला मौला रे , या मौला मौला मौला रे....
Wednesday, October 19, 2011
ख़ामोशी में खैरियत.....
हमने तो इंसानों में कुछ अजब तबीयत देखी है,
खरे लिबासों में लिपटी इक खोटी नीयत देखी है,
पल में दरिया पल में पत्थर इनके दिल हो जाते हैं,,
हर मौके पर उनकी बदलती हुई शक्सियत देखी है,
जैसी जिसकी पड़ी ज़रूरत वैसा उसका भाव लगा,
हर रिश्ते की चढ़ती गिरती हमने अहमियत देखी है,
अब ये दोस्ती की बातें कुछ लगती हैं बेमानी सी,
मौसम के रंगों में ढलती उनकी कैफियत देखी है,
कितने सच्चे दिल से देखो जाल झूठ का बुन डाला,
सहमी उसमे फँसी हुई लाचार असलियत देखी है,
जिसने सुन ली अरज हमारी उसकी इबादत धरम बनी ,
हर दिल में उस खुदा की इक मुक्तलिफ़ हैसियत देखी है,
कह कह कर दिल की बातें हम जब इतना बदनाम हुए,
तब से हमने ख़ामोशी में अपनी खैरियत देखी है
Monday, May 2, 2011
दास्तां हम जो ....
दास्तां हम जो अपनी सुनाने लगे,
लोग हम से निगाहें चुराने लगे,
ये मेरी साफगोई है मेरा कसूर
ये समझने में हमको ज़माने लगे,
बोझ दुश्वारियों का बढ़ा इस कदर,
आदतन अपना सर हम झुकाने लगे,
तेरी रुसवाई के डर से चुप हम रहे,
लोग हम पे ही ऊँगली उठाने लगे,
आईने मेरे घर के भी हैरान है,
अपनी सूरत हम उनसे छिपाने लगे,
दर्द दिल में छुपाया तो मुफलिस रहे,
कागजों पे बहा तो कमाने लगे,
तेरी यादों के दानों को चुग चुग के हम,
पंछियों की तरह चहचहाने लगे …
Monday, April 4, 2011
बारिश....
इन तपिश भरी बूंदों की दहक तो ना छीनो,
इन बारिशों से उनकी ये महक तो ना छीनो,
तेरी जुल्फों से गुज़र कर ये घटा करवटें लेगी,
तड़प के बरसने की है जो कसक तो ना छीनो,
बादलों ने आज भर ली है खुद में बिजलियाँ,
उनसे उनकी गरज और चमक तो ना छीनो,
मौसम ने संवर कर आज तेरे घर का रुख किया,
बेचारे से उस के नसीब की झलक तो ना छीनो,
मत करो क़ैद खुद को तुम इन छतों के नीचे,
तुम्हे भिगोने का है उनको हक़ तो ना छीनो
Friday, April 1, 2011
यकीं कर.....
ख्वाबों पे यकीं कर अपनी ख्वहिश पे यकीं कर,
खुद पे ऐतबार , अपनी कोशिश पे यकीं कर,
तपती हुयी राहों में कभी राहत तो मिलेगी,
उम्मीद के हैं बादल तू बारिश पे यकीं कर,
वक़्त का हर लफ्ज़ तेरी मौसिक़ी में ढलेगा,
लगा ले सुर और खुद की बंदिश पे यकीं कर,
है सूरत कामयाबी की तेरे तस्सवुर के माफिक,
कायनात की इस खुबसूरत साजिश पे यकीं कर,,
हौसले अगर हो जाएँ कभी तेरे मायूस,
किस्मत से हिम्मत की इस रंजिश पे यकीं कर,
Tuesday, January 11, 2011
ज़िन्दगी......ज़िन्दगी
उस रात ज़िन्दगी किसी जलसे में गयी थी,
गर्मजोशी से मिलती लोगों से लोगों की झूठी मुस्काने,
आँखों में ही थे छुपे हुए कुछ बनते बिगड़ते अफ़साने,
नोटों के बीच में धंसे हुए हाथ थे जेबों में खूब गरम,
महंगी खुशबुओं की तेज़ी में कहीं घुट रही थी शरम,
वोह गर्मी थी शोखी की,टकराते जिस्म और जामों की,
वोह गर्मी थी गुरूर की ओहदों , रसूख और नामों की,
इठलाती उंगलियाँ मनचाहे इलाकों में जा सरक रही थी,
अपने नशे में मदमस्त ज़िन्दगी उस रात थिरक रही थी,
उस रात ज़िन्दगी किसी गली से भी गुजरी थी,
मायूसियों की यहाँ हौसलों से रोज़ जंग होती है,
लम्बी होती हैं रातें और उम्मीदें तंग होती है,
जिस्मों को बार बार बर्फीली हवा ढकती है ,
बेबस हो कर ऑंखें भी भोर का मुंह तकती है,
आंसुओं की गर्मी कुछ पल सेंक देगी गालों को,
रोकर ही जलाएंगे वो जीवन के जंजालों को,
चिथड़ों में तो थी वह लिपटी फिर भी बिखर रही थी,
ठंडी सड़कों पर लेटी ज़िन्दगी उस रात ठिठुर रही थी,
Gmail
गर्मजोशी से मिलती लोगों से लोगों की झूठी मुस्काने,
आँखों में ही थे छुपे हुए कुछ बनते बिगड़ते अफ़साने,
नोटों के बीच में धंसे हुए हाथ थे जेबों में खूब गरम,
महंगी खुशबुओं की तेज़ी में कहीं घुट रही थी शरम,
वोह गर्मी थी शोखी की,टकराते जिस्म और जामों की,
वोह गर्मी थी गुरूर की ओहदों , रसूख और नामों की,
इठलाती उंगलियाँ मनचाहे इलाकों में जा सरक रही थी,
अपने नशे में मदमस्त ज़िन्दगी उस रात थिरक रही थी,
उस रात ज़िन्दगी किसी गली से भी गुजरी थी,
मायूसियों की यहाँ हौसलों से रोज़ जंग होती है,
लम्बी होती हैं रातें और उम्मीदें तंग होती है,
जिस्मों को बार बार बर्फीली हवा ढकती है ,
बेबस हो कर ऑंखें भी भोर का मुंह तकती है,
आंसुओं की गर्मी कुछ पल सेंक देगी गालों को,
रोकर ही जलाएंगे वो जीवन के जंजालों को,
चिथड़ों में तो थी वह लिपटी फिर भी बिखर रही थी,
ठंडी सड़कों पर लेटी ज़िन्दगी उस रात ठिठुर रही थी,
Gmail
Saturday, January 8, 2011
सियासत के तरीके.....
देख के कुदरत के क़यामत के तरीके,
आ गए इंसान को इबादत के तरीके,
दुश्मनों के घर जा उन्हें गले लगाया,
बता दिए उनको अदावत के तरीके,
बड़ी बेरुखी से उन्होंने नज़र फेर लीं,
देखे हैं ऐसे भी इजाज़त के तरीके,
मुखालफतों के डर से फ़रमाँ बदल गए,
हुकूमतें सिखाती हैं बगावत के तरीके,
जिंदा इंसानों को भी तो बुत बना दिया,
भूला ये शहर अपनी नफासत के तरीके,
ख़्वाबों को अपने ये बेचना चाहती नहीं ,
अजीब हैं आँखों की तिजारत के तरीके,
हौसलों की चादर तले महफूज़ है उम्मीद.,
आसान हैं इसकी हिफाज़त के तरीके,
दर्द-ए-दिल लबों पे आ के मुस्कुरा दिया
सीख लिए इसने भी सियासत के तरीके,
Subscribe to:
Posts (Atom)