Wednesday, July 23, 2008

जो आप हमें न मिलते...

मेरे अरमानों के कदम तो ख़ुद से कभी न हिलते,

कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें न मिलते,

ना कुछ पाने की चाहत और न कुछ खोने की चिंता,

न रातों को जाग जाग मैं अपनी धड़कन को गिनता,

छूट के मेरे हांथों ये पल ना राहों में बिखरते,

उन सारे लम्हों को भला क्यों ढूंढ ढूंढ मैं बिनता,

यादों के धागों से तन्हाई के ज़ख्म न सिलते,

कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें न मिलते,

न चाहत के के दिए चमक कर इन आँखों में जलते,

उजाले से सपने आकर ना इन आँखों में पलते,

ना सुबह और रात के दरम्यान इतनी दूरी होती,

उमर गुज़र जाती पूरी इक दिन के ढलते ढलते,

लफ्जों के ये फूल मेरे इन होठों पे ना खिलते,

कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें ना मिलते,

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