Wednesday, January 18, 2012

रेत का एक ज़र्रा

वो रेत का एक ज़र्रा था,
साहिल पे उसने उम्मीदों के बड़े अजब से मंज़र देखे थे,
कुछ ही कदमों की दूरी पर उसने तो समुन्दर देखे थे,
सूरज की तपती लौ में उसका सूनापन रोज़ ही सिंकता था,
अपने सीने हाथ फेर कर तन्हाई के वो किस्से लिखता था,
इक दिन इक लहर भूल के रस्ता रेत के घर तक चढ़ आई ,
सागर ने रोका लाख उसे पर मौज में वो बरबस बढ़ आई,
भीगा जो उसका जिस्म ज़रा तो रेत का रूप ही बदल गया,
और लहर के ज़रा से छूने से उसका तो संयम फिसल गया,
उस पर पानी का नशा चढ़ा ,मदहोश हो के थिरकने लगा,
अपनी ज़मीन से होके जुदा अपने वजूद से सरकने लगा,
पर लहरें कब साहिल पे रुकी जब सागर ने उन्हें खींचा है,
वो भूल गयी उसने जा कर कितने ख्वाबों को सींचा है,
वापस वो अपने गाँव चली बल खाते हुए वो इतराते हुए,
महल रेत का गिराते हुए,उस रेत को इतना जताते हुए
वो रेत का एक ज़र्रा ही तो था...


Tuesday, January 17, 2012

तेरे घर का तो चाँद है उजला सा,मेरे घर का चाँद तो फीका है,
तेरे जलवे बयां करने का ये तो , रात का अपना तरीका है,

मेरे दिल की धड़कन अब देखो, पंचम सुर में जा धड़कती है,
दिल ने भी ये दिलकश सा अंदाज़ , अभी -अभी तो सीखा है,

आँखों को आंसू ढोने की ये सजा तो इक दिन मिलनी ही थी,
पहली ही नज़र में इश्क किया , आखिर ये जुर्म इन्ही का है,

सौ बार कहा ये जुबां से कि सब कुछ वो सच सच कह डाले,
बोली इस अदब के शहर में तो ख़ामोशी ही सही सलीका है ...

Sunday, January 8, 2012

आने वाला कल.......

यूँ होके परेशान मै जीता तो नहीं हूँ,
घुट घुट के घूँट दर्द के पीता तो नहीं हूँ,

ज़ख्मो को खुला छोड़ मै फिरता हूँ दर-बदर,
आंसू की डोर से उन्हें सीता तो नहीं हूँ,

ये फ़िक्र हारने की सताती नहीं मुझे,
हर खेल ज़िन्दगी का मै जीता तो नहीं हूँ,

अब क्यूँ गुज़िश्ता गम में हो बरबाद ये उम्र,
हूँ आने वाला कल अभी बीता तो नहीं हूँ.

कामयाबी के आसार.....

मेरी शोहरतों के कितने दावेदार बन गए,

जो अजनबी थे वो भी रिश्तेदार बन गए,

सारी उम्र जिन रिश्तों ने झुलसाया था मुझे,

बदली फिजा,वो मौसम खुशगवार बन गए,

बरसों तलक हमारी किसी ने भी खबर न ली,

हम सुर्खियाँ बने तो वो अखबार बन गए,

अपनी उदासियों से मैंने तनहा लड़ी थी जंग,

खुशियाँ मिली तो कितने हिस्सेदार बन गए,

दुश्मनों ने दोस्ती की पेशकश कर दी है ,

मेरी कामयाबी के शायद आसार बन गए.......


वजह नहीं है....

तेरी आँखों में गर मेरे आंसू की जगह नहीं है,
फिर तो मेरे पास कोई जीने की वजह नहीं है,

बेवफाई का है ये मामला, दर्ज कहाँ करवाएं,
कानूनन इस खता की तो कोई भी सजा नहीं है,

तेरा गुनाह है तेरी गवाही, और तू ही क़ाज़ी भी है,
इकतरफा लगता है मुकदमा इसमें मज़ा नहीं है,

बनी ठनी ये हंसी जो इस चेहरे पे दिखती है,
है ये जिद होठों की कोई दिल की रज़ा नहीं है ....

Friday, November 25, 2011



होठों पे हंसी ले आये मगर, हम खुशियाँ गिरवी रख आये,
इक लम्हा जी लेने के लिए, कुछ सदियाँ गिरवी रख आये,

इक प्यास बुझाने की खातिर, हाय रे ये क्या हम कर बैठे,
इक कतरा पानी पी तो लिया, पर नदियाँ गिरवी रख आये

ईमान की जर्जर ईटों को , गुमान के गारे से ढक डाला,
इक दुनिया सजा ली हमने मगर,इक दुनिया गिरवी रख आये,

अब सीख लिए हैं हमने भी, सौदेबाज़ी के दांव सभी,
बाजारों में जा के खरीदे हुनर, और कमियां गिरवी रख
आये,

Saturday, November 12, 2011

, ख्वाब टूटने का डर....

कभी कभी कोई ख्वाब आँखों की दहलीज़ तक आ के ठिठक जाता है...

और सोचता है क्या लेटने के लिए गर्म बिछौना होगा अन्दर,

क्या उसकी उम्मीदें समेट सकेगी पलकों की नन्ही चादर,

आदत है इस ख्वाब को फैल कर के सोने की ,

खुल कर के हंसने की , खुल कर के रोने की,

कहीं ऐसा ना हो कि आंख की मुट्ठी खुल जाए,

और आंसू के पानी से रंग इसके धुल जाएँ,

वो ख्वाब रात भर ख़ामोशी से पकना चाहता है,

वो मुक्तसर से हर लम्हे को चखना चाहता है,

इल्म है धूप उसके जिस्म में ज़ख़्म कर देगी,

जागेगी जब सुबह तो इसे ख़तम कर देगी,

मुझे तुनक मिजाज़ नींद के रूठने का डर है
,
ख्वाब के बीतने का नहीं,इसके टूटने का डर है....