Wednesday, November 17, 2010

धन्धा चल गया.....

लो बीती सुबह, गुजरी रात आज गया और कल गया,

मेरा हर ख्वाब रोज़मर्रा की कशमकश में ढल गया,

वो आग कभी गुरूर,कभी बदगुमानी ने लगा डाली,

मेरा मासूम चेहरा तड़प तड़प के उसमे जल गया,

बड़ा सुकून था किल्लत भरी उस ज़िन्दगी में भी ,

मयस्सर नियामतों का होना भी अब मुझको खल गया,

मेरे कुछ दोस्त थे,कुछ हमसफ़र और हमनवाज़ भी थे,

मेरा मसरूफ होना मेरे हर एक रिश्ते को छल गया,

मेरे हर माल की कीमत भी अब बढ़ चढ़ के लगती है,

ज़मीर बेचने का ये धन्धा भी अच्छा खासा चल गया

Wednesday, September 22, 2010

मेरी ज़िन्दगी बेहतरीन हो गयी है.....

चमचमाती धुप ये ज़रीन हो गयी है

की मौसम की रंगत हसीन हो गयी है,

बारिशों ने आकर जो छिड़का है पानी,

तो यादें भी ताज़ातरीन हो गयी है,

तराशती है लफ़्ज़ों को बारीकियों से

जुबां भी तो कितनी महीन हो गयी है,

तुम से मिल के इस का ये हाल हुआ है,

मेरी हया पर्दा - नशीं हो गयी है,

सोच अब दिमागों की लगती है अहमक,

बातें दिलों की ज़हीन हो गयी है

तेरी इन अदाओं से हो कर के वाकिफ ,

मेरी ज़िन्दगी बेहतरीन हो गयी है.....

Tuesday, August 17, 2010

फिर लौट के तू आ जाएगी...

हर रोज़ मैं अपनी यादों से तेरे दिल पे लकीरें खींचूंगा,
हर रात मैं अपने सपनो से तेरी नींदों को सीचूंगा,
ये डोर है कच्चे धागों की,ये बिन जोड़े जुड़ जाएगी,
तुम बात कोई भी छेडोगी,वो मेरी तरफ मुड जायेगी...
फिर लौट के तू आ जाएगी...

जब बारिश की गुमसुम बूंदे इक सूनापन बरसाएंगी,
जब सावन की वो ख़ामोशी तेरे लफ़्ज़ों को तरसायेंगी,
तब धूप मेरी आवाजों की तेरे मन पे कुछ लिख जाएगी,
और मौसम की बदली रंगत तेरी सूरत पे दिख जाएगी...
फिर लौट के तू जाएगी...

बीते लम्हों की महफ़िल में तुम जाकर मुझको ढूँढोगी
मुझको आंखों में छुपा लोगी और पलकें अपनी मून्दोगी,
जब मेरे ख्यालों की ख्श्बू तेरी साँसों को महकाएगी,
तब मेरे गीतों की सरगम तेरे होठों पे सज जायेगी......
फिर लौट के तू जाएगी...

Monday, May 17, 2010

समय की सीढ़ी

रोज़ सुबह की आँखों में इक नयी कहानी पढता हूँ,
मै सपनों का हाथ पकड़ कर समय की सीढ़ी चढ़ता हूँ

हवा की लट में फूल घूंध कर मौसम को महकाता हूँ
मै बारिश में रंग घोल कर आशाएं बरसाता हूँ
सागर की इन लहरों में बीते नयी हिलोरें भरता हूँ
मैं सूरज की किरणें अपने हाथों से चमकाता हूँ

मैं चमकीली धुप गला कर धरा के गहने गढता हूँ
मैं सपनो का हाथ पकड़ कर समय की सीढ़ी चढ़ता हूँ,

चलते चलते उम्मीदों को लगता है आघात कोई,
जब जीवन में हो जाती है अनहोनी सी बात कोई,
आशंका का गहरा तम जब नभ पर छा सा जाता है,
नींद से लड़ने आ जाती है लम्बी सी जब रात कोई,

तब प्रकाश का परचम ले कर अंधकार से लड़ता हूँ,
मै सपनो का हाथ पकड़ कर समय की सीढ़ी चढ़ता हूँ,

बीते पल की याद कभी और अगले पल की आस कभी,
ये सब छोड़ो और सोचो कि क्या है अपने पास अभी,
कभी निराशा के बादल घिर आयें सभी दिशाओं से
विचलित ना होने पाए इस मन का ये विश्वास कभी

वर्तमान के उन्नत पथ पर यूँ ही निरंतर बढ़ता हूँ,
मै सपनो का हाथ पकड़ कर समय की सीढ़ी चढ़ता हूँ,

Sunday, April 11, 2010

कहूँ या न कहूँ...

बड़े ज़ाहिर तरीके से ये बातों को छुपाती है,
मेरी बेताबियाँ मुझ को नए करतब सिखाती हैं,

मैं अपने जिस्म के भीतर बगावत किस तरह झेलूं,
जुबां खामोश रहती है तो ख्वहिश तिलमिलाती है,

मेरी नींदों ने मेरी आशिकी के राज़ खोले हैं,
जो तू ख्वाबों में आती है तो पलकें मुस्कुराती हैं,

ये ऑंखें झुकती हैं अक्सर उस रब की इबादत में,
जो खुलती हैं हैं तो ये खुद को तेरे नज़दीक पाती हैं,

बड़ी नक्काशियां करती है मेरी ये कलम देखो,
की कागज़ पे ये लफ़्ज़ों से तेरी सूरत बनाती है

मेरी हर शायरी में ज़िक्र तेरा होता है क्यूँ हरदम,
तेरी मौजूदगी ही तो इसे काबिल बनाती है,

Thursday, April 1, 2010

अब आ जाओ

हम को तो तेरे ख्वाबों से हो जाएगी तस्सली ,
इक रात तुम मुझको सुलाने के लिए आ जाओ,

सुनते हैं तेरी निग़ाह में है ठंडी सी एक तपिश,
इक बार मुझे उस आग में जलाने के लिए आ जाओ,

रूठी हो तुम सौ बार तो तुम्हे सौ बार मनाया ,
इक बार मुझे तुम भी मनाने के लिए आ जाओ ,

दिखते है निशां तेरे अब तक सागर के किनारे,
इक बार उन्हें बन के लहर मिटाने के लिए आ जाओ

यूँ ही...

यूँ तो मुझे तुमसे कोई नाराज़गी नहीं,
पर अब इन वफाओं में वो ताजगी नहीं,

तन्हाई के इस शहर में आ के अच्छा -खासा बस गया हूँ
फितरत दीखते अब मेरी आवारगी नहीं,

इबादतों के तौर तरीके अब कुछ बदले से दिखते हैं,
अब उनमे सजदों की अदायगी नहीं

तुम को खोने की कसक भी अब थोड़ी सी कम हो गयी है,
रौनक है चेहरे पे बेचारगी नहीं,

ख्वाबों को अपने अब सुला दो और किसी की आँखों में तुम,
नींदों में अब मेरी वो दीवानगी नहीं,