मेरे गालों पे दुनिया को जो इक पगडण्डी दिखती है,
वो मेरे आंसुओं की राह गुजरने का इक ज़रिया है,
मेरे नज़दीक जब आया ...तो डूबा दिल की मस्ती में,
तुम्हारा दिल था पत्थर का ,हमारा दिल इक दरिया है,
कहीं जब रात होती है .....कहीं पर दिन निकलता है,
वो भी इक नज़रिया है .........ये भी इक नज़रिया है,
खबर उनको तो लग ही जाती है..... मेरे मंसूबों की,
ये ऑंखें मुखबिर हैं उनकी,ये चेहरा इक खबरिया है....शेखर
Sunday, April 8, 2012
मत भेज तू अपनी यादें पिया मैं थक सी गयी हूँ,
झूठे हैं तेरे वादे ........... पिया मैं थक सी गयी हूँ,
बिरहा की इस अग्नि में तप कर,
नाम तेरा सौ बार मै ....जप कर,
भूली अपना .......नाम पता सब,
बैरी मुझको...... यूँ न सता अब,
तू मेरी प्रीत भुला दे ......पिया मैं थक सी गयी हूँ,
मत भेज तू अपनी यादें पिया मैं थक सी गयी हूँ,
उलझी सी ..........तकदीर ये मेरी,
तू भी ना जाने .........पीर ये मेरी,
तू जो है मेरा.........सब से कह दूँ,
तू ही रब है.............रब से कह दूँ,
अब क्या करूँ और इरादे पिया मैं थक सी गयी हूँ,
मत भेज तू अपनी यादें पिया मैं थक सी गयी हूँ,
Wednesday, January 18, 2012
रेत का एक ज़र्रा
वो रेत का एक ज़र्रा था,
साहिल पे उसने उम्मीदों के बड़े अजब से मंज़र देखे थे,
कुछ ही कदमों की दूरी पर उसने तो समुन्दर देखे थे,
सूरज की तपती लौ में उसका सूनापन रोज़ ही सिंकता था,
अपने सीने हाथ फेर कर तन्हाई के वो किस्से लिखता था,
इक दिन इक लहर भूल के रस्ता रेत के घर तक चढ़ आई ,
सागर ने रोका लाख उसे पर मौज में वो बरबस बढ़ आई,
भीगा जो उसका जिस्म ज़रा तो रेत का रूप ही बदल गया,
और लहर के ज़रा से छूने से उसका तो संयम फिसल गया,
उस पर पानी का नशा चढ़ा ,मदहोश हो के थिरकने लगा,
अपनी ज़मीन से होके जुदा अपने वजूद से सरकने लगा,
पर लहरें कब साहिल पे रुकी जब सागर ने उन्हें खींचा है,
वो भूल गयी उसने जा कर कितने ख्वाबों को सींचा है,
वापस वो अपने गाँव चली बल खाते हुए वो इतराते हुए,
महल रेत का गिराते हुए,उस रेत को इतना जताते हुए
वो रेत का एक ज़र्रा ही तो था...
Tuesday, January 17, 2012
तेरे घर का तो चाँद है उजला सा,मेरे घर का चाँद तो फीका है,
तेरे जलवे बयां करने का ये तो , रात का अपना तरीका है,
मेरे दिल की धड़कन अब देखो, पंचम सुर में जा धड़कती है,
दिल ने भी ये दिलकश सा अंदाज़ , अभी -अभी तो सीखा है,
आँखों को आंसू ढोने की ये सजा तो इक दिन मिलनी ही थी,
पहली ही नज़र में इश्क किया , आखिर ये जुर्म इन्ही का है,
सौ बार कहा ये जुबां से कि सब कुछ वो सच सच कह डाले,
बोली इस अदब के शहर में तो ख़ामोशी ही सही सलीका है ...
तेरे जलवे बयां करने का ये तो , रात का अपना तरीका है,
मेरे दिल की धड़कन अब देखो, पंचम सुर में जा धड़कती है,
दिल ने भी ये दिलकश सा अंदाज़ , अभी -अभी तो सीखा है,
आँखों को आंसू ढोने की ये सजा तो इक दिन मिलनी ही थी,
पहली ही नज़र में इश्क किया , आखिर ये जुर्म इन्ही का है,
सौ बार कहा ये जुबां से कि सब कुछ वो सच सच कह डाले,
बोली इस अदब के शहर में तो ख़ामोशी ही सही सलीका है ...
Sunday, January 8, 2012
आने वाला कल.......
यूँ होके परेशान मै जीता तो नहीं हूँ,
घुट घुट के घूँट दर्द के पीता तो नहीं हूँ,
ज़ख्मो को खुला छोड़ मै फिरता हूँ दर-बदर,
आंसू की डोर से उन्हें सीता तो नहीं हूँ,
ये फ़िक्र हारने की सताती नहीं मुझे,
हर खेल ज़िन्दगी का मै जीता तो नहीं हूँ,
अब क्यूँ गुज़िश्ता गम में हो बरबाद ये उम्र,
हूँ आने वाला कल अभी बीता तो नहीं हूँ.
घुट घुट के घूँट दर्द के पीता तो नहीं हूँ,
ज़ख्मो को खुला छोड़ मै फिरता हूँ दर-बदर,
आंसू की डोर से उन्हें सीता तो नहीं हूँ,
ये फ़िक्र हारने की सताती नहीं मुझे,
हर खेल ज़िन्दगी का मै जीता तो नहीं हूँ,
अब क्यूँ गुज़िश्ता गम में हो बरबाद ये उम्र,
हूँ आने वाला कल अभी बीता तो नहीं हूँ.
कामयाबी के आसार.....
मेरी शोहरतों के कितने दावेदार बन गए,
जो अजनबी थे वो भी रिश्तेदार बन गए,
सारी उम्र जिन रिश्तों ने झुलसाया था मुझे,
बदली फिजा,वो मौसम खुशगवार बन गए,
बरसों तलक हमारी किसी ने भी खबर न ली,
हम सुर्खियाँ बने तो वो अखबार बन गए,
अपनी उदासियों से मैंने तनहा लड़ी थी जंग,
खुशियाँ मिली तो कितने हिस्सेदार बन गए,
दुश्मनों ने दोस्ती की पेशकश कर दी है ,
मेरी कामयाबी के शायद आसार बन गए.......
वजह नहीं है....
तेरी आँखों में गर मेरे आंसू की जगह नहीं है,
फिर तो मेरे पास कोई जीने की वजह नहीं है,
बेवफाई का है ये मामला, दर्ज कहाँ करवाएं,
कानूनन इस खता की तो कोई भी सजा नहीं है,
तेरा गुनाह है तेरी गवाही, और तू ही क़ाज़ी भी है,
इकतरफा लगता है मुकदमा इसमें मज़ा नहीं है,
बनी ठनी ये हंसी जो इस चेहरे पे दिखती है,
है ये जिद होठों की कोई दिल की रज़ा नहीं है ....
फिर तो मेरे पास कोई जीने की वजह नहीं है,
बेवफाई का है ये मामला, दर्ज कहाँ करवाएं,
कानूनन इस खता की तो कोई भी सजा नहीं है,
तेरा गुनाह है तेरी गवाही, और तू ही क़ाज़ी भी है,
इकतरफा लगता है मुकदमा इसमें मज़ा नहीं है,
बनी ठनी ये हंसी जो इस चेहरे पे दिखती है,
है ये जिद होठों की कोई दिल की रज़ा नहीं है ....
Subscribe to:
Posts (Atom)