Friday, January 9, 2009

तुम.....

नींद भी तुम और रात भी तुम,

खामोशी और बात भी तुम,

सुबह की धुप और शाम का रूप,

तुम चारों पहर का करार हो,

तुम ही तो मेरा प्यार हो,

चैन भी तुम आराम भी तुम,

फुर्सत तुम और काम भी तुम,

मज़हब तुम और मकसद तुम,

दीवानगी हो जूनून हो,

तुम ही तो मेरा सुकून हो,

राह भी तुम और चाह भी तुम,

दर्द भी तुम और आह भी तुम,

मन्नत और मंसूबों में ,

तुम मुद्दत से शामिल हो,

तुम ही तो मेरी मंजिल हो,

मर्ज भी तुम और दवा भी तुम,

तुम खुशबू और सबा भी तुम,

तुम माहौल तुम मिजाज़,

तुम मुस्कुराते मौसम हो,

तुम ही मेरे हमदम हो,

तुम ही मन तुम ही तन,

तुम धड़कन और जीवन,

तुम रवायत, तुम चाहत,

तुम ही मेरी इबादत हो,

तुम ही मेरी आदत हो,

Saturday, November 29, 2008

लश्कर ...

दहशतों का शोर कुछ देर ज़रा बंद करो,

सुनाई देती नही दिल की अब पुकार मुझे ,

खामोश निगाहों की जुबान को ज़रा पढ़ के देखो,

किसी बगावत के नज़र आते हैं आसार मुझे,

ज़ुल्म के दौर में रहम की अब उम्मीद कहाँ,

अब तो वहशतों का रहता है इंतज़ार मुझे,

मंदिरों मस्जिदों में भी भीड़ नही दिखती देती ,

वो खुदा भी नज़र आता है लाचार मुझे,

नफरतों ने दिलो पे जा के फतह कर ली है,

प्यार की ताक़त पे नही रहा अब ऐतबार मुझे,

अमन की कीमतें लहू से चुकानी होगी,

नही मंज़ूर कोई ऐसा अब करार मुझे ,

जज्बो की बारूद और असलहे हो लफ्जों के,

इन्ही से करना है लश्कर कोई तैयार मुझे

Wednesday, October 1, 2008

कद्र कीजिये.....

बगैर मन्नतों की इबादत की कद्र कीजिये,

बेवजह याद करने की आदत की कद्र कीजिये,

बेखौफ चले आते हैं ये दिल से निकल कर,

थोड़ा तो इन लफ्जों की हिमाकत की कद्र कीजिये,

बरसों पुरानी होके भी ये महक रही हैं,

यादों की ताजगी की हिफाज़त की कद्र कीजिए,

ख्वाइश मुक्कमल हो जाए इतनी सी है ख्वाइश,

रवाएतो से इनकी बगावत की कद्र कीजिये,

दर्द मेरे सभी हैं अब आपके सुपुर्द,

ख़ुद ही आप अपनी अमानत की कद्र कीजिये,

जुदाई में ही मुमकिन था इस रिश्ते का वजूद,

कुछ तो इस रिश्ते की नजाकत की कद्र कीजिये,

Sunday, September 21, 2008

कोई ज़रूरी तो नही....

हर ग़म को अपने गले लगाना कोई ज़रूरी तो नही,

आँखों से आंसू पल पल गिराना कोई ज़रूरी तो नही,

दर्द हजारों रह सकते हैं इस दिल की आहों मे छुप कर,

चेहरे पे उनकी नुमाइश लगाना कोई ज़रूरी तो नही,

अपनी इबादतों पे यकीं करता हूँ मैं बस इतनी ख़बर है,

खुदा का मुझ पर मेहर लुटाना कोई ज़रूरी तो नही,

अपनी मंजिल का तो पता पूछ ही लूँगा अंधियारे से,

धुप का मेरी राह चमकाना कोई ज़रूरी तो नही,

वक़्त सहला के कर देता है सारे ज़ख्मों का इलाज,

बातों का उनपे मरहम लगाना कोई ज़रूरी तो नही,

हकीकतों की ज़मीं पे गहरी नींद सो लेता हूँ मैं ,

ख्वाबों की इसपे चादर बिछाना कोई ज़रूरी तो नही,

उम्र के इस मुकाम पे जो खुदगर्ज़ हो चले हैं,

उन रिश्तों का बोझ उठाना कोई ज़रूरी तो नही,

Sunday, August 31, 2008

नज़र आता है......

क्यूँ नही चेहरे पे मेरे ग़म नज़र आता है,
क्या करें लोगों को थोड़ा कम नज़र आता है,

निगाहें बयां कर देती हैं इंसान की फितरत,
शकल से तो हर शख्स हमदम नज़र आता है,

मायूसियों की धुप है, उदासियों की बारिश,
ये तो कोई नया ही मौसम नज़र आता है,

शायद सारी रात रोये हैं ये सपने जाग के,
आँखों का बिछौना कुछ नम नज़र आता है,

ये ज़ख्म तुम्हारी ओर बड़ी उम्मीद से देखते हैं,
बातों में तुम्हारी इन्हें मरहम नज़र आता है,

अपनी इबादतों पे फ़िर से यकीन कर के देखें,
इनके हौसले में अब भी दम नज़र आता है,

Tuesday, August 26, 2008

ज़रा सी ज़हमत और सही...

जुबान पे ला के रिश्ते को रुसवा नही करना ,
जहाँ से नज़रें चुरा के निगाहों से उतरना,

थक के मेरे सीने में जा सो गया है वो,
उस दर्द पे पाँव रख के तुम अब न गुज़रना,

ऑंखें न बन सकेंगी अब उनकी मेज़बान,
कह दो अपने ख्वाब से वो आए इधर न,

बरसों से दिल में फक्र से रहते थे जो लम्हे, ,
अब ख़ुद ही चाहते है वो खुल के बिखरना,

अब वहां पे कोई मेरा आशियाँ नही,
यादों के शहर जाके कहीं और ठहरना

Monday, August 18, 2008

नई सुबह

आज सुबह से पुछा मैंने इतना क्यूँ मुस्काती हो,
रोज़ रोज़ इक नई ज़िन्दगी कहाँ से ले कर आती हो,

कभी तो लाये धुप सुनहरी कभी रुपहले बादल तू,
और कभी फ़िर ओढ़ के आए सतरंगी सा आंचल तू,

कभी हवा में छिपा के खुशबु फूलों तक ले जाती हो,
और रंग फूलों के चुरा के घर घर तुम पहुंचाती हो,

कभी चहकती नदी में बहती आशाओं की नाव बने,
कभी निराशाओ के पल में उम्मीदों की छाँव बने

कभी ओस की चादर बन तुम अंधियारे ढक लेती हो,
और रौशनी को उसकी आज़ादी का हक देती हों

इन आँखों से नींद उड़ा के सपने तुम भर देती हो,
उन सपनो को राह दिखा कर पल में सच कर देती हो