इक सपना सुबह से मांगें,
और पलकों पे उस को टांगें,
दिन भर उसे धुप मे सेंकें,
फिर रात मे उस को देखें;
इक मीठा सा नग्मा चख कर,
कुछ पल उसे दिल मे रख कर,
उसे सरगम मे नेहलायें,
फिर होठों पे फेहरायें;
जब तनहा लगें ये रातें,
तब चांद से कर के बातें,
हम तारों को लायें नीचे,
और रंगों से उनको सींचें;
हम जेब मे ले के उम्मीदें,
कुछ खुशियाँ जहाँ से खरीदें,
फिर नींद मे उनको घोलें,
और रख के सिरहाने सो लें;
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