ख्वाइश दिल मे बहुत रह चुकी अब तो जुबान तक पहुंचे,
कह दो उम्मीदों से अब वो आसमान तक पहुंचे;
मैं निकल पड़ा हूँ खुद के भरोसे अब अपनी मंजिल की तरफ,
किस्मत का यकीं कहाँ कब मेरे मकान तक पहुंचे;
दम तोड़ते हैं हौसले दो चार कदम चल के,
कामयाबी पहुंची उन तक जो इम्तेहान तक पहुंचे;
उगते हैं अरमानों के पंख दिल के मैदानों मे,
नादाँ है जो उन्हें खरीदने किसी दुकान तक पहुंचे;
ले चलें बुलंदियों तक इसे कि इस का ये हक है,
इस से पहले ये ज़िंदगी अपनी ढलान तक पहुंचे;
खुदा कि रहमत तब होगी जब खुद से ज़हमत होगी ,
उस को कहाँ फुरसत कि वो हर इंसान तक पहुंचे;
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