Tuesday, January 8, 2008

तेरी मुस्कानों कि खातिर......

तेरी मुस्कानों कि खातिर इतना तो किया जा सकता है,
चहरे से छलकता दर्द तेरा हाथों मे लिया जा सकता है;

बातों के कच्चे धागों से ये ज़ख्म कहाँ भर पायेंगे,
कुछ ज़ख्मों को बस प्यार भरी नज़रों से सिया जा सकता है;

है बात बड़ी शाइस्ता सी , तुम इसको खता मत कह देना,
रुखसार पे बिखरे अश्कों को होठों से पिया जा सकता है;

मसरूफ हूँ अपनी उलझन मे पर इतना भी खुदगर्ज़ नही,
तेरी तन्हाई को इक लम्हा फुरसत का दिया जा सकता है;

अपने ख्वाबों के साथ मेरी आँखों मे बसने आ जाओ,
तुम को शायद मालूम नही ऐसे भी जिया जा सकता है

4 comments:

Unknown said...

this is what one can say roomaniyat in true sense..
very sweet and beautiful creation touching d heart....

मसरूफ हूँ अपनी उलझन मे पर इतना भी खुदगर्ज़ नही,
तेरी तन्हाई को इक लम्हा फुरसत का दिया जा सकता है;
bahut khoob...

shukriya

डॉ 0 विभा नायक said...

vah kya baat hai, aapki shaayri padh kar mere dimag mei bhi kuchh line ubhar aayen--
itni shiddat se chaaha na tha hamne,
aankh bhar usko kabhi dekha na tha hamne,
parrrrrrrrr n jaane kun
subak padi theen jab khaamoshiyaan
in bekhauf aankhon mei,
tapkti boondon ko unhi hathelion mei gum hua paaya tha hamne.....

Inexplicable Quest said...

Its one my favorites......amongst ur creations....in fact d best till now....weeuuuuuuu!

no wordsss....

Anonymous said...

hi, have a very happy birthday, i wish this birthday day would bring lots of happiness and great luck for you....


vibha naik..