एक बार फ़िर सपना बन पलकों पे सजने आओ तुम,
एक बार फ़िर मेरे दिल को आ कर के बहलाओ तुम,
एक बार तुम फ़िर से देखो आकर मुझको पहली बार,
एक बार मैं फ़िर जानू कैसा होता है पहला प्यार,
एक बार फ़िर उम्मीदों को आसमान पे सजने दो,इन्द्रधनुष के रंग की धुन पर गीत प्यार का बजने दो,
एक बार फ़िर हाथ पकड़ कर संग चलो तुम थोडी दूर,
एक बार फ़िर कर लेने दो को मुझ को तुम ख़ुद पे गुरूर,
एक बार बातों को मेरी थोड़ा चुप रह जाने दो,मेरी खामोशी का मतलब मुझको समझाने दो,
बुझती आशा के दीपक फ़िर से जीवन दान दो,
मेरी अभिलाषा को फ़िर से थोड़ा सा अभिमान दो,एक बार फ़िर रूठो मुझसे और फ़िर मुझे मनाने दो,
इसी बहाने को सच को मेरे होठों तक आ जाने दो,
एक बार तस्वीर में अपनी रंग प्यार का भरने दो,
मेरे सपनो की रंगत को थोड़ा और संवरने दो,
एक बार तुम थोड़ा कह से ज़्यादा मुझे सुन लेने दो,
अपनी चाहत के लम्हों को फ़िर से मुझे चुन लेने दो,
बन जाओ तुम मेरी प्रेरणा गाने की मुस्काने की,
एक बार फ़िर जीवित कर लूँ ख्वाहिश तुम को पाने की,
Friday, July 18, 2008
एक बार फ़िर...
Wednesday, May 14, 2008
तुम बिन
तुम बिन मेरा जीवन कुछ ऐसा हो जाए,
हाथ से उसकी रेखाएं जैसे खो जाएं
जैसे गीत को उसकी सरगम ना मिल पाये,
जैसे सुबह बिना सबा के ही खिल जाए
जैसे कोई चांदनी बिन रात के हो,
जैसे सूनी जुबान बिन बात के हो
जैसे मिलकर बिछुड़े मन के अपने हो,
जैसे आंख से रूठे उसके सपने हों
जैसे बारिश से हो उसकी बूंदे जुदा,
जैसे बिना इबादत के हो कोई खुदा
जैसे तारों से खफा जगमग हो जाए,
और ज़ख्म से दर्द कभी अलग हो जाए
जैसे नशे से छीन ले कोई उसका सुरूर,
कोई कैसे रह सकता है ख़ुद से दूर
Sunday, May 4, 2008
बहुत साल पहले
फ़िर भी माँ कह पाना तुझको माँ कितना आसान था,
मिश्री में घुली लोरी सुन जब नींद मुझे आ जाती थी,
सुंदर से सपने तुम मेरे तकिये पे रख जाती थी,
मेरी ऑंखें देख के मन की बातें तुम बुन लेती थी ,
मेरी खामोशी को जाने तुम कैसे सुन लेती थी,
मेरी नन्ही उंगली तेरी मुट्ठी मे छिप जाती थी,
कितनी हिम्मत तब मेरे इन क़दमों को मिल जाती थी,
चोट मुझे लगती थी लेकिन दर्द तो तुम ही सहती थी,
मेरी आँखों की पीड़ा तेरी आँखों से बहती थी,
तेरे आँचल मे छुपने को मन सौ बार मचलता है,
माँ तेरी गोदी में अब भी मेरा बचपन पलता है
Tuesday, March 25, 2008
चंद शेर
१। कब तक यूं ही तन्हा तनहा ख्वाबों मे सैर होगी,
बड़ी दुशवार अब नींद भी तेरे बगैर होगी,
तुम अपने लम्हों को ज़रा मेरे वक्त से आकर जोडो,
तुम साथ होगी तब ही तो इस शब की खैर होगी
२। बड़ी रफ़्तार से वक्त और हालात बदलते हैं,
पल भर में ही लोगो के जज्बात बदलते हैं,
जिन लबों पे नाम मेरा रहता था मुस्तकिल,
मेरा ज़िक्र आते ही अब वह बात बदलते हैं
३। क्यों बेवफाई का सबक मुझको सिखा दिया,
बागियों की फेरहिस्त में मेरा नाम लिखा दिया,
खुश्फहमियों के सराब में जी रहा था में,
क्यों हकीकत का आइना मुझको दिखा दिया
Monday, March 17, 2008
तेरी ऑंखें जादू करती हैं
तेरी ऑंखें जादू करती हैं
कुछ मुस्काती ,कुछ रोई सी,
कुछ अलसाती कुछ सोई सी,
कुछ यादों में हैं उलझी सी,
कुछ सपनो मे हैं खोई सी
इनके आगे ही झुक झुक कर ,
तेरी पलकें सजदा करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं
इनमे दिन हैं और रातें हैं,
खामोशी है और बातें हैं,
इनमे हैं जुदाई के लम्हे,
और इनमे ही मुलाकातें हैं,
वक्त भी रुक सा जाता है ,
इक पल ये जहाँ ठहरती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं
ये खुशबु को महकाती हैं,
और खुशियों को चहकाती हैं,
हर रात नशीली कर के ये
ख्वाबों को बहकाती हैं,
पलकों के पीछे चुप करके ,
मासूम खताएं करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं,
तेरी ऑंखें जादू करती हैं
Saturday, March 15, 2008
मर्ज़-ऐ-खुदगर्जी
ज़ख्मों से दर्द की मिसाल पूछते हैं,
हर सितम पे बनती है जिनकी जावाबदेही,
मासूमियत भरे वो सवाल पूछते हैं
राहों को पत्थरों से दुशवार बना के ,
लडखडाती क्यों है वो चाल पूछते हैं
ख़ुद अपनी गवाही पे ले कर के फैसले,
क्या है आवाम का ख्याल पूछते हैं
खुदगर्जी के मर्ज़ से बीमार हो चले हैं,
और लोगों की तबियत का हाल पूछते हैं
Friday, March 14, 2008
एक दूसरा जहाँ ...
कुछ और ही कह के पुकारो इसे यह प्यार कहाँ हो सकता है
जाने क्यों हम इन नग्मों को होठों पे सजा के फिरते हैं,
वैसे तो यह पूरा अफसाना आँखों से बयां हो सकता है
आसां तो नहीं है इतना भी यादों की किताबें पढ़ लेना,
किसी भी पन्ने पर हिसाब ज़ख्मों का निहां हो सकता है
ज़रूरी नहीं की इस दिल मे हसरत के शोले दहकते हों,
जो दिखता है वो बुझती हुई ख्वाइश का धुआं हो सकता है,
लोग मेरी इन आँखों मे क्यों तुमको ढूँढा करते हैं,
पलकों पर बाकी अब तक तेरे ख्वाबों का निशान हो सकता है,
तुम अपनी बेवफाई पे अब मुझको यकीन आ जाने दो,
वरना फ़िर तेरी मोहब्बत का मुझको भी गुमान हो सकता है