Friday, April 13, 2012
मत भेज तू अपनी यादें
Sunday, April 8, 2012
मेरी परिस्तिशों का कुछ सवाब दे खुदा,
ज़िन्दगी का कुछ लब्बो-लुआब दे खुदा,
मैंने मुस्कानों की बड़ी कीमत चुकाई है,
कुछ मेरे आंसुओं का भी हिसाब दे खुदा,
लोगों ने हर मोड़ पे मुझसे पूछे है सवाल,
कभी तो मेरी जानिब से तू जवाब दे खुदा,
तू तो छुप के रहता है कहीं आसमान में,
मुझे भी मुंह छुपाने को इक नकाब दे खुदा,
तेरे दर पे तो आ के झुकते है सर ये सारे,
अपने बन्दों को भी कुछ रुआब दे खुदा.....
तेरे जमाल से कमाल चला, कलम से तेरे कलाम चले,
दिल, नज़र,ज़ुबां और जिगर मोहताज़ है तेरी रहमत के,
ये इश्क है तेरी सल्तनत, तेरे हुकुम पे ये अवाम चले...
समझना तेरी नीयत को अब नामुमकिन सा लगता है..
तेरे इश्क में कमा लेता हूँ खुशगवार कुछ लम्हे,
मुझ से मेरा धंधा पानी, रोज़गार मत छीनो.
चढ़ा बुखार कुछ ऐसा की घोड़ी चढ़ने का दिल आया,
झट-पट उसने अखबारों में इश्तिहार फिर ये छपवाया,
चाहिए एक अदद घरवाली, कम शब्दों में ये लिखवाया,
फिर क्या था बस रिश्तों की उस पर होने लगी बौछार,
किस को चुनू किसको छोडू मुश्किलें बढ़ गयी हज़ार,
उसने अपनी अकल लगायी,जाकर फिर कुंडली बनवाई,
ज्योतिष बोला मंगली लड़की ही बन सकती तेरी लुगाई,
वापस आकर उस लड़के ने रिश्तों का डब्बा खंगाला,
इक ही लड़की थी मंगली उसका बायो -डाटा निकाला,
पर उस लड़की का परिवार कुछ अलग था कुछ अजब था,
हर रिश्तेदार का धंधा वहां पर बड़ा अनोखा बड़ा गज़ब था ,
लड़की के पापा थे डाकू , चम्बल के बीहड़ में तैनात,
मम्मी भी थी खूब कमाती,बाहर रहती रात बिरात,
एक भाई के ऊपर कितने कतल के चल रहे थे कितने केस ,
एक भाई के शौक निराले, जुआं, सटटा घोड़ों की रेस,
पर एक भाई के बारे में नौकरी -चाकरी नहीं बताई,
लड़का चौंका सोचा उसने आखिर क्यूँ ये बात छुपायी,
बोला वो लड़की के बाप से पूरा विवरण दीजिये जनाब,
तीसरे लड़के का चरित्र क्या खानदान में सबसे खराब?
लड़की का पिता कुछ सकुचाया,डरा, सहमा हिचकिचाया,
बोला आप कहीं मना न कर दे इस लिया हमने नहीं बताया,
पर अब पुछा है तो सुनिए वो देश को रोज़ धोखा देता है,
कहते हुए शर्म आती है की तीसरा बेटा इक नेता है....शेख
और न तनहाइयों से तू बहल ऐ ज़िन्दगी,
आज मेरे संग किसी महफ़िल में चल ऐ ज़िन्दगी,
चादरें मायूसियों की ओढी तुम ने उम्र भर ,
ओढ़नी उम्मीद की लेकर निकल ऐ ज़िन्दगी,
अपनी हर तखलीक को कुदरत ने इक फितरत है दी,
(तखलीक- creation )
कर ना शिकवा पत्थरों से, तू संभल ऐ ज़िन्दगी,
न तो बदलेगी रवायत न कोई दस्तूर ही,
(रवायत-tradition )
वक़्त तू ज़ाया न कर , खुद को बदल ऐ ज़िन्दगी,
आइना वो चीज़ है जो बात दिल की ही कहे,
इस की चिकनी बात में अब न फिसल ऐ ज़िन्दगी,
सिल दिए मजबूरियों ने लब हकीकत के मगर,
बर्फ ख़ामोशी की पिघले , तू उबल ऐ ज़िन्दगी,
,ये चेहरा इक खबरिया है
वो मेरे आंसुओं की राह गुजरने का इक ज़रिया है,
मेरे नज़दीक जब आया ...तो डूबा दिल की मस्ती में,
तुम्हारा दिल था पत्थर का ,हमारा दिल इक दरिया है,
कहीं जब रात होती है .....कहीं पर दिन निकलता है,
वो भी इक नज़रिया है .........ये भी इक नज़रिया है,
खबर उनको तो लग ही जाती है..... मेरे मंसूबों की,
ये ऑंखें मुखबिर हैं उनकी,ये चेहरा इक खबरिया है....शेखर