और न तनहाइयों से तू बहल ऐ ज़िन्दगी,
आज मेरे संग किसी महफ़िल में चल ऐ ज़िन्दगी,
चादरें मायूसियों की ओढी तुम ने उम्र भर ,
ओढ़नी उम्मीद की लेकर निकल ऐ ज़िन्दगी,
अपनी हर तखलीक को कुदरत ने इक फितरत है दी,
(तखलीक- creation )
कर ना शिकवा पत्थरों से, तू संभल ऐ ज़िन्दगी,
न तो बदलेगी रवायत न कोई दस्तूर ही,
(रवायत-tradition )
वक़्त तू ज़ाया न कर , खुद को बदल ऐ ज़िन्दगी,
आइना वो चीज़ है जो बात दिल की ही कहे,
इस की चिकनी बात में अब न फिसल ऐ ज़िन्दगी,
सिल दिए मजबूरियों ने लब हकीकत के मगर,
बर्फ ख़ामोशी की पिघले , तू उबल ऐ ज़िन्दगी,
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