Sunday, April 8, 2012

1.तेरी आंख खुली इधर,और उधर मयखानों में जाम चले,
तेरे जमाल से कमाल चला, कलम से तेरे कलाम चले,
दिल, नज़र,ज़ुबां और जिगर मोहताज़ है तेरी रहमत के,
ये इश्क है तेरी सल्तनत, तेरे हुकुम पे ये अवाम चले...

2.नज़र , दिल और चेहरे की ज़ुबां कुछ मुक्तलिफ़ सी है,
समझना तेरी नीयत को अब नामुमकिन सा लगता है..


3.जो भी है मेरा तुझपे वो अख्तियार मत छीनो,
तेरे इश्क में कमा लेता हूँ खुशगवार कुछ लम्हे,
मुझ से मेरा धंधा पानी, रोज़गार मत छीनो.


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