Tuesday, August 26, 2008
ज़रा सी ज़हमत और सही...
जहाँ से नज़रें चुरा के निगाहों से उतरना,
थक के मेरे सीने में जा सो गया है वो,
उस दर्द पे पाँव रख के तुम अब न गुज़रना,
ऑंखें न बन सकेंगी अब उनकी मेज़बान,
कह दो अपने ख्वाब से वो आए इधर न,
बरसों से दिल में फक्र से रहते थे जो लम्हे, ,
अब ख़ुद ही चाहते है वो खुल के बिखरना,
अब वहां पे कोई मेरा आशियाँ नही,
यादों के शहर जाके कहीं और ठहरना
Monday, August 18, 2008
नई सुबह
रोज़ रोज़ इक नई ज़िन्दगी कहाँ से ले कर आती हो,
कभी तो लाये धुप सुनहरी कभी रुपहले बादल तू,
और कभी फ़िर ओढ़ के आए सतरंगी सा आंचल तू,
कभी हवा में छिपा के खुशबु फूलों तक ले जाती हो,
और रंग फूलों के चुरा के घर घर तुम पहुंचाती हो,
कभी चहकती नदी में बहती आशाओं की नाव बने,
कभी निराशाओ के पल में उम्मीदों की छाँव बने
कभी ओस की चादर बन तुम अंधियारे ढक लेती हो,
और रौशनी को उसकी आज़ादी का हक देती हों
इन आँखों से नींद उड़ा के सपने तुम भर देती हो,
उन सपनो को राह दिखा कर पल में सच कर देती हो
।
Wednesday, July 23, 2008
जो आप हमें न मिलते...
कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें न मिलते,
ना कुछ पाने की चाहत और न कुछ खोने की चिंता,
न रातों को जाग जाग मैं अपनी धड़कन को गिनता,
छूट के मेरे हांथों ये पल ना राहों में बिखरते,
उन सारे लम्हों को भला क्यों ढूंढ ढूंढ मैं बिनता,
यादों के धागों से तन्हाई के ज़ख्म न सिलते,
कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें न मिलते,
न चाहत के के दिए चमक कर इन आँखों में जलते,
उजाले से सपने आकर ना इन आँखों में पलते,
ना सुबह और रात के दरम्यान इतनी दूरी होती,
उमर गुज़र जाती पूरी इक दिन के ढलते ढलते,
लफ्जों के ये फूल मेरे इन होठों पे ना खिलते,
कुछ अलग जिंदगी हो जाती जो आप हमें ना मिलते,
सपने पकते हैं...
खामोश सदायें शोर में खो जाती हैं,
हँसते हैं जब ग़म हमारी हालत पे,
खुशियाँ पलकों के पीछे रो जाती हैं,
भीगी आँखों से किसी की राह तकते हैं,
आंसुओं की गर्मी में ही सपने पकते हैं,
हौसले मौजों के जब साहिल पे रुकते हैं,
अंधेरों से डर कर के साए भी छुपते हैं,
जिन ज़ख्मों ने ओढी थी वक्त की चादर,
यादों के झोंके आने से वो भी दुखते हैं,
दिल से आँखों की तरफ़ कुछ ज़ख्म सरकते हैं,
आंसुओं की गर्मी में ही सपने पकते हैं,
ये दर्द आख़िर क्यूँ इतनी तकलीफें सहता है,
ख़ुद से ही सहमा सा चुप चाप रहता है,
झांकता है होठों से कभी आह ये बनकर,
या फ़िर बनकर इल्तिजा आँखों से बहता है,
लफ्ज़ इसको अपनाने में क्यूँ झिझकते हैं
आंसुओं की गर्मी में ही सपने पकते हैं,
तू जो कहे तो,
तेरे दुखते सपने अपनी पलकों से सहला दूँ मैं,
तनहा तनहा दिल जो तेरा खोया है किस उलझन में,
अपने दिल के पास बिठा कुछ देर उसे बहला दूँ मैं,
तू जो कहे तो तेरी उदासी थाम लूँ अपने हाथों से,
दर्द को तेरे कुछ समझाऊँ प्यार भरी इन बातों से,
चमकीली सी धूप कभी जो चहरे को सताए तो,
चांदनी का आँचल तब मैं मांग के लाऊं रातों से,
तू जो कहे तो बातों को तेरी अपनी जुबान से जोडू मैं,
अपनी मुस्कानों को तेरे लबों की तरफ़ अब मोडू मैं,
अपने मन के सूनेपन तक इनको तुम आ जाने दो,
तेरी खामोशी को अपने लफ्जों से फ़िर तोडू मैं,
इतिहास बदल जाता है
वक्त बदलने निकली हुई हवा के जादू से,
ओस की चादर ओढे हुए फूलों की खुशबु से,
नई किरण सुबह की गोद में महकती है,
धुप ज़मीं पे लेट के पल पल चहकती है,
देहलीज़ पे खड़ी खुशियों की आवाज़ को सुनकर,
पहनती है ये ऑंखें नया सपना इक बुनकर,
एक कदम तारों की तरफ़ मुझ से उठवाती हैं,
नयी लकीरें हाथों पे उनसे खिंचवाती हैं,
जागते हैं कुछ हौसले तब नींद से उठकर,
थमती है उम्मीद उनके हाथों को बढ़कर,
रौशनी में नहा कर वो लिबास बदल जाता है,
और यूँ ही जिंदगी का इतिहास बदल जाता है,
Friday, July 18, 2008
एक बार फ़िर...
एक बार फ़िर सपना बन पलकों पे सजने आओ तुम,
एक बार फ़िर मेरे दिल को आ कर के बहलाओ तुम,
एक बार तुम फ़िर से देखो आकर मुझको पहली बार,
एक बार मैं फ़िर जानू कैसा होता है पहला प्यार,
एक बार फ़िर उम्मीदों को आसमान पे सजने दो,इन्द्रधनुष के रंग की धुन पर गीत प्यार का बजने दो,
एक बार फ़िर हाथ पकड़ कर संग चलो तुम थोडी दूर,
एक बार फ़िर कर लेने दो को मुझ को तुम ख़ुद पे गुरूर,
एक बार बातों को मेरी थोड़ा चुप रह जाने दो,मेरी खामोशी का मतलब मुझको समझाने दो,
बुझती आशा के दीपक फ़िर से जीवन दान दो,
मेरी अभिलाषा को फ़िर से थोड़ा सा अभिमान दो,एक बार फ़िर रूठो मुझसे और फ़िर मुझे मनाने दो,
इसी बहाने को सच को मेरे होठों तक आ जाने दो,
एक बार तस्वीर में अपनी रंग प्यार का भरने दो,
मेरे सपनो की रंगत को थोड़ा और संवरने दो,
एक बार तुम थोड़ा कह से ज़्यादा मुझे सुन लेने दो,
अपनी चाहत के लम्हों को फ़िर से मुझे चुन लेने दो,
बन जाओ तुम मेरी प्रेरणा गाने की मुस्काने की,
एक बार फ़िर जीवित कर लूँ ख्वाहिश तुम को पाने की,